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December 05, 2013

Ek Maa, Ek Beti (एक माँ, एक बेटी)

बबुनी, झूली थी मैं भी कन्धों पर
सोयी थी सीने से चिपटकर
खिलखिलाकर ऊँगली थामा था कई बार
दुनिया देखी थी लाड़ में लिपटकर

तेरी आँखों में देखा है बचपन मैंने
मेरे माँ बाबा की बुजुर्गी मासूमियत
उनका प्यार, उनका लाड़, उनका अभिमान
मुझमें मिलते देखी है उनकी शख्सियत

वो उनका बिना शर्त शह देना मुझे
घर आते मेरा दौड़ के लिपटना उनसे
झेंपना अपनी शरारतों पर और जा चूमना
उनके गालो को माफ़ी के तौर से

बबुनी, कल तक जो मैं भी बबुनी थी
आज तेरी सरपरस्त, तेरी माँ हूँ
तू मिल गयी तो और ये लगता है
किस तरह मैं आज भी उनकी जां हूँ 

3 comments:

Saumya Shukla said...

Touched the heart, Anuradha. You just found your new fan :) Please continue writing ....always

Anonymous said...

Wow

ASTRID said...

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